Sunday, June 14, 2020

भागी हुई लड़कियां / आलोक धन्वा

अगर एक लड़की भागती है
 तो यह हमेशा जरूरी नहीं है
 कि कोई लड़का भी भागा होगा

 कई दूसरे जीवन प्रसंग हैं
जिनके साथ वह जा सकती है
कुछ भी कर सकती है
महज जन्म देना ही स्त्री होना नहीं है

तुम्हारे उस टैंक जैसे बंद और मजबूत
घर से बाहर
लड़कियां काफी बदल चुकी हैं
मैं तुम्हें यह इजाजत नहीं दूंगा
कि तुम उसकी सम्भावना की भी तस्करी करो

वह कहीं भी हो सकती है
गिर सकती है
बिखर सकती है
लेकिन वह खुद शामिल होगी सब में
गलतियां भी खुद ही करेगी
सब कुछ देखेगी शुरू से अंत तक
अपना अंत भी देखती हुई जाएगी
किसी दूसरे की मृत्यु नहीं मरेगी

-- आलोक धन्वा की कविता है और हिंदी में ही लिखी हुई है। पहली दफा रवीश कुमार के कार्यक्रम में सुनी और पसंद आयी। कविता कोष में पूरा भाग उपस्थित है.

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