Saturday, September 19, 2020

Ode to the cat : Pablo Neruda : Hindi Translation

 लंबी पूंछ वाले 

सारे जानवर अधूरे थे 

और उनकी किस्मत में था दुर्भाग्य।


थोड़ा-थोड़ा करके 

उन्होंने खुद का एक चित्र बनाया,

एक परिदृश्य,

अपनी चित्तियाँ, सुघड़ता, और उड़ान जोड़ कर।


लेकिन बिल्ली,

केवल बिल्ली

गर्व से भरपूर प्रकट हुई थी:

वो पूरी सक्षम पैदा हुई थी,

अकेले चलते हुए और यह जानते हुए कि वह क्या चाहती है।


आदमी बनना चाहता है मछली या फिर पक्षी,

सांप को चाहिए कि उसके पंख हो 

कुत्ते को लगता है जैसे कि वो हो एक बेढंगा शेर,

इंजीनियर चाहता है कवि बनना,

मक्खी कोशिश करती है और तेज उड़ने की,

और कवि मक्खी की नकल करने की कोशिश करता है,

लेकिन बिल्ली

सिर्फ बिल्ली बने रहना चाहती है

और कोई भी बिल्ली सिर्फ और सिर्फ बिल्ली होती है

अपनी मूंछों से लेकर अपनी पूंछ तक,

अपनी आशावादी दृष्टि से चूहे को खोजने से लेकर 

किसी असली बात तक

रात से लेकर उसकी सुनहरी चमकती आँखों तक।



बिल्ली के शरीर की रचना जैसा 

कोई भी संगम नहीं है। 

चाँद और फूल के पास

नहीं है ऐसा कोई भाव। 

बिल्ली तो सूरज या पुखराज की तरह है

और उसकी लचीले आकार की 

सुदृढ़ और कोमल रेखाएं

ऐसी हैं

जैसे किसी बड़े जहाज के मुखङे की रेखाएं हो ।

उसकी पीली आँखें

जैसे हो एक खांचा

रात के समय सोने के सिक्के को गढ़ने के लिए बना हुआ।


बिल्ली है जैसे की 

कोई साम्राज्य न होते हुए भी एक छोटी साम्राज्ञी  

कोई राज्य ना होते हुए भी एक विजेता, 

जैसे किसी बैठक कक्ष की बाघ,

जैसे किसी गुप्त आकाश की सुल्ताना,

जैसे छत पर बनी कोई सुन्दर रंगोली,

जैसे किसी तूफान में प्रेम की हवा। 

वो जब अपने आस पास की जगह पर

दावा करती हुई 

जमीन पर रखती है 

चार नाजुक पैर,

तो संदेह से सूंघती है 

उस हर एक चीज को जो पृथ्वी पर हो 

क्योंकि सब कुछ

बहुत अशुद्ध है

उसके निर्मल विशुद्ध पैरों के लिए।


वो है 

घरेलू, पर आजाद और जंगली सी, 

अभिमानी, रात के उल्लास सी,

आलसी और जिम्नास्टिक भी,

कभी किसी दूसरे ग्रह से आयी हुई सी,

बहुत गहरी सी,

शयनकक्षों की गुप्त चौकीदार कभी

तो कभी गुम हो चुके मखमल के स्पर्श सी,

निश्चित रूप से 

कोई पहेली नहीं है

उसके तौर तरीको में,

शायद वो बिलकुल भी छुपी रुस्तम नहीं हैं,

हर कोई उसकी आदतें जानता है

और वो सबसे कम 

रहस्यमयी बाशिंदा होगी। 

शायद हर किसी को इस बात का विश्वास है 

हर कोई मानता है खुद को

मालिक, रखवाला,

या फिर चाचा

किसी न किसी बिल्ली का। 

हर किसी की बिल्ली है 

उसकी सखा

उसकी सहयोगी,

उसकी शिष्य,

या एक अज़ीज दोस्त। 


पर मैं नहीं।

मैं नहीं मान पाऊंगा ये सब 

क्यूंकि मैं बिल्ली को नहीं समझ पाता।

मुझे और सब कुछ पता है- 

जिंदगी और उसके पहलूओं के बारे में,

समुद्र और अगम्य शहरो की कहानियाँ,

वनस्पति विज्ञान,

पुराने अंतरमहल और वहाँ की सनकी बातें,

गणित का जोड़ और गुणा-भाग,

दुनिया भर के ज्वालामुखी,

मगरमच्छ के अवास्तविक कवच,

फायरमैन की अनजान करुणा,

पुजारियों की नीली विरासत,

मुझे इन सब के बारे में पता है 

लेकिन मैं एक बिल्ली को नहीं समझ सकता

मेरे तर्क उसके वैराग पर हार जाते हैं। 

जैसे उसकी आँखों में सुनहरे अंक भरे हुए हों।

Ode To The Onion by Pablo Neruda (Hindi Translation)

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